Saturday 18 March 2017

एक जंगल है तेरी आँखों में ..मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ ....

एक जंगल है तेरी आँखों में ..मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ  यह बेहतरीन और दिल को छू लेने वाले अल्फाज निकले हिन्दी के जाने -माने कवि दुष्यंत कुमार जी की कलम से ..इनका जन्म उत्तरप्रदेश के जिला बिजनोर राजपुर नवाडा गाँव में हुआ और हिन्दी में ग़ज़लों को लोकप्रिय बनाने में इनका काफी योगदान रहा ..अपनी कम उम्र की ज़िन्दगी में भी वो साहित्य की दुनिया को अनमोल रचनायें दे गये..इस ग़ज़ल को सुनने से पहले में उनकी रचनाओं से अनजान ही था ..एक रोज मनीष जी के ब्लॉग एक शाम मेरे नाम के पीछे के पन्नो को पलटने के दौरान दुष्यंत कुमार जी की इस ग़ज़ल को सुनने का मौका मिला और फिर हुआ यूँ की उस दिन इसके सिवा कुछ और सुनने का मन ही नही हुआ आखिर यह ग़जल है ही इतनी शानदार की हर शब्द आपको  सुनने  का सुखद एहसास देता है ..इसको अपनी सुरीली आवाज़ से नवाजा है मीनू पुरषोत्तम  ने जिन्होंने अपनी गायकी की शुरुवात 1963 में फिल्म ताजमहल से की थी ..जितनी खूबसूरत यह ग़जल है उतनी ही खूबसूरती से उन्होंने इसे गाया भी है

एक जंगल है तेरी आँखों में ..मैं जहाँ  राह भूल जाता हूँ 
तू किसी रेल सी गुजरती है में किसी पूल सा थरथराता हूँ 
हर तरफ ऐतराज़ होता है में अगर रौशनी में आता हूँ 
एक बाजू उखड़ गया जबसे 
और ज्यादा वजन उठाता हूँ 
मैं तुझे भूलने की कोशिश में 
आज कितने करीब पाता हूँ 
कोन ये फासला निभाएगा
मैं फरिस्ता हूँ सच बताता हूँ 


दुष्यंत कुमार के साहित्य संग्रह की बात करे तो उनमें साये में धूप,आवाजों के घेरे ,जलते हुए वन का वसन्त आदि मुख्य हैं और जिनमें से साये में धूप एक गजल संग्रह है और यह ग़ज़ल भी उसी का एक हिस्सा  है अगर मेरी पहली पसंद पूछी जाये तो वो बिल्कुल साये में धूप होगी क्यूँ की इसकी हर एक रचना बहुत ही उम्दा है वैसे इसी गजल को गजल गायक चन्दन दास की आवाज में भी सुना जा सकता है 




5 comments:

  1. बहुत लाजवाब ग़ज़ल और उतनी ही कमल की गायकी ... मज़ा आ गया ...

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    1. कुछ यही शब्द मेरे भी थे इसको सुनने के बाद दिगम्बर जी

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  2. वाह!
    बहुत ही सुन्दर गजल और गायकी...।ंं

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    1. मेरी तरह आपको भी ये गजल पसंद आई जानकर खुशी हुई सुधा जी

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