Tuesday 6 September 2016

तेरे इश्क़ में जो भी डूब गया ...उसे दुनिया की लहरों से डरना क्या...


सूफी संगीत  एक रूहानी रिश्ता कायम करता है खुदा की इबादत का एक अनोखा और खूबसूरत  रास्ता जो रूह से गुज़रकर खुदा तक जाता है ।इस अनोखे एहसास का अपना अलग ही मज़ा है ।एक अलग ही माहोल बनता है और गाने वाले सुनने वाले सब उस दरिया में डूब जाते है । जंहा  इस दुनिया का ध्यान ही नहीं रहता ।ऐसा ही सूफी का रंग चढ़ जाता है जब में अब्दुल्ला कुरैशी के गाये  "तेरे इश्क़ में जो भी डूब गया ।उसे दुनिया की लहरों से डरना क्या" सूफी कलाम को सुनता हूँ । वैसे इसका ऑरिजनल वर्जन  अलां फकीर और मोहम्मद अली शेखी ने गाया है । जो सिंधी और पंजाबी में है । पाकिस्तान के टीवी शो नेसकैफे बेसमेंट सीजन 2 में भी इसे गाया गया है । लेकिन अब्दुल्ला कुरैशी की लाइव परफॉरमेंस मैं  गाया यह सूफी कलाम एक अलग ही सुकून देता है । शायद इसलिए भी की मैंने पहले इसी को सुना वो भी कई दफा । अब्दुल्ला पाक्सितान के इस्लामाबाद से है ।और लाइव शो करते है।

हो ! इस इश्क़ दी जंगी विच मोर बुलेंदा 
सानु किबला  तों क़ाबा  सोणा यार डिसेंदा
देखूँ जब में जमी देखूँ ये आसमान

सब तेरे है निशान ,सब तेरे है  निशान