ज़िंदगी शायद यूँही गुजरती रहती है
कूदते फांदते दिन तो निकल जाता है
रात की मुश्किल है बिना रोटी के नींद नहीं देती
कभी इस करवट कभी उस करवट कट जाती है रात फिर
सुबह रौशनी लेके आती है खोई हुई तेरी मेरी आँखों में
उम्मीद की चमक दे जाती है
सहारे उसके फिर दिन गुज़रता है
मासूमियत आँखों से झलकती रहती है दिन भर
और रात को बारिश की तरह बरसती रहती हैं
ज़िन्दगी शायद यूँही गुज़रती रहती है
कूदते फांदते दिन तो निकल जाता है
रात की मुश्किल है बिना रोटी के नींद नहीं देती
कभी इस करवट कभी उस करवट कट जाती है रात फिर
सुबह रौशनी लेके आती है खोई हुई तेरी मेरी आँखों में
उम्मीद की चमक दे जाती है
सहारे उसके फिर दिन गुज़रता है
मासूमियत आँखों से झलकती रहती है दिन भर
और रात को बारिश की तरह बरसती रहती हैं
ज़िन्दगी शायद यूँही गुज़रती रहती है
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